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Published In 1978 In Tamil, This Book Is A Superbly Contemporary Drama About A Seventh-Century Hero In A Clash Between High-Caste Hindus And The Suppressed People Of Atypical Tamil Village.
A journey into the depths of the male psyche. A novel that presents innovations in theme and narrative.-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
हमारे पाठक ‘लीला’ को भूले न होगें। तिलिस्मी दारोगावाले बँगले की बर्बादी के पहिले तक इसका नाम आया है, जिसके बाद फिर इसका जिक्र नहीं आया*। (*देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, नौवाँ भाग, आठवाँ बयान।) लीला को जमानिया की खबरदारी पर मुकर्रर करके मायारानी काशीवाले नागर के मकान में च...
पाठक समझते होंगे कि ऐसे समय में इन लोगों के आ पहुँचने और जान बचाने से किशोरी खुश हुई होगी और इन्द्रजीत से मिलने की कुछ उम्मीद भी उसे हो गई होगी मगर नहीं, अपने बचाने वाले को देखते ही किशोरी चिल्ला उठी और उसके दिल का दर्द पहले से भी ज़्यादे बढ़ गया। किशोरी ने आसमान की तरफ़ द...
अब हम अपने पाठकों का ध्यान जमानिया के तिलिस्म की तरफ फेरते हैं, क्योंकि कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को वहाँ छोड़े बहुत दिन हो गये, और अब बीच में उनका हाल लिखे बिना किस्से का सिलसिला ठीक नहीं होता। हम लिख आये हैं कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने तिलिस्मी किताब को पढ़कर स...
अब वह मौका आ गया है कि हम अपने पाठकों को तिलिस्म के अन्दर ले चलें और वहाँ की सैर करावें, क्योंकि कुँअर इन्द्रजीत सिंह और आनन्दसिंह मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जा विराजे हैं, जिसे एक तरह पर तिलिस्म का दरवाजा कहना चाहिए। ऊपर के भाग में यह लिखा जा चुका है कि भ...
भूतनाथ अपना हाल कहते-कहते कुछ देर के लिए रुक गया और इसके बाद एक लम्बी साँस लेकर पुनः यों कहने लगा– ‘‘मैं अपने को कैदियों की तरह और सामने अपनी ही स्त्री को सरदारी के ढंग पर बैठे हुए देखकर, एक दफे घबड़ा गया और सोचने लगा कि क्या मामला है? मेरी स्त्री मुझे सामने ऐसी अवस्था में ...
‘चन्द्रकान्ता’ (सन् १८८८) को मूलतः और प्रमुखतः एक प्रेम-कथा कहा जा सकता है। चार हिस्सों में विभाजित इस उपन्यास की कथा अनायास ही हमें मध्यकालीन प्रेमाख्यानक काव्यों का स्मरण कराती है। इस प्रेम-कथा में अलौकिक और अतिप्राकृतिक तत्त्वों का प्रायः अभाव है और न ही इसे आध्य...
Devaki Nandan Khatri s extraordinary novel, first published in 1888, is set in a courtly world of princes and princesses, magnificent palaces and gardens. The beautiful Princess Chandrakanta is imprisoned in an ancient tilisma, and waits to be rescued. Her lover, the valiant Prince Birendra Singh, battles jealous rivals and tries to break the ancient enchantment in order to reach her. The real protagonists of the story, however, are not the prince and the princess, but their secret agents, the spy-magicians known as aiyaars.
Novel, based on the life of Chandrakanta, princess of Vijaygarh.